Wednesday, August 8, 2012

विडंबना


भारत एक ऐसा देश जहा की 30% आबादी ने अभी तक बिजली के दर्शन भी नहीं किये है । बाकी के 70% के  पास है भी तो वो हमेशा इन्तजार करते रहते है की बिजली कब आएगी ।
यह ऐसा देश है जहाँ 37 रुपये कमाने वाले को कानूनन गरीब नहीं बोलते ।चाहे उसका पेट भरे या ना भरे । इस देश का सारा धन 1% लोगो के पास है ।
ऐसे देश की सरकार इस देश के गरीबो को मोबाइल देने जा रही हैजो की गरीबो के लिए एक खिलोने से ज्यादा कुछ नहीं होगा। क्यों की गरीब न तो उसे चार्ज कर सकता और न ही रीचार्ज कर सकता है । क्यों  की गरीब को पता है की खाली पेट बात भी नहीं होगी ।
इस सरे सद्यन्त्र में केवल फिर फिर से एक गोताले की बू आ रही है ।काश ये महान नेता मोबाइल के बजाये गरीब के पेट के बारे में सोचते ।
 

Sunday, June 10, 2012

ये जिंदगी


रफ्ता रफ्ता चलती ।
कभी चढ़ती कभी उतरती ।
शिखर पे होती
कभी गर्त में
कभी लगती ठहरी सी
किंतु चलती रहती
ये जिंदगी ।

सफ़र के दौरान
हर दोराहे पे खड़ी
लगती ऊलझी सी
उलझ के भी न ठहरी
आगे बढ़ती
बढ़ के आप ही सुलझी
ये जिंदगी ।

Sunday, April 15, 2012

मकान


"मकान" जिसको बनाना हर दिल का ख्वाब है।
किराये के मकान में रहना लगता अभिशाप है।

मकान छोटा या बड़ा लगता स्वर्ग सा है।
अपने मकान में आना लगता पर्व सा है ।

मकान तो ईट - पत्थर की एक ईमारत है   ।
लेकिन बनाने वाले की जीवन भर इबादत है।

मकान खून-पसीने से जलाई हुई शमा है ।
इसलिए बनाने वाले की रूह बसती वहां है।

मकान होना सफलता की एक सोपान है ।
इसलिए मकान हर जीवन की शान है    ।

Saturday, March 31, 2012

ये जिंदगी !!

रिश्तो के पहाड़ पर खड़ी
कर्तव्य की परिधि में बंधी
पैसो के टुकड़ो से बनी
सबने ने ठोकरों से गिनी
ये जिंदगी!
 
शिखर और गर्त में चली
अपने और आपनो के सपनो 
को साकार करने चली
'नवीन' युग की चाह में बढ़ी
ये जिंदगी !

हस्र क्या होगा न जाने
बस कर्म के सहारे चलती
परिणाम का पता नहीं 
तभी तो एक धूत क्रीडा है 
ये जिंदगी !

कभी दूसरो के इशारों पे
तो कभी आपनी शर्तो पे चली
कभी डरावने रूप में होती
तो कभी बहुत खूबसूरत है
ये जिंदगी !
 

क्या यही प्रगति की परिभाषा है?

क्या यही प्रगति की परिभाषा है?
क्या यही हमारी आशा है ।

वन बाग़ बगीचे नाश किया
पेंड़ो का खूब संहार हुआ,
हरयाली को भी स्वप्न किया
कंक्रीट का जंगल खड़ा किया।
क्या यही प्रगति की परिभाषा है?

प्राण वायु को दूषित कर,
आगे बदने की अभिलाषा है,
जिस औदोगिक्ता की आंधी में,
जीवन विनाश की आशा है
क्या यही प्रगति की परिभाषा है?

हर जगह रसायन मिला रहे,
जहर दूध में हम पिला रहे ।
छाछ मलाई छोड़ के हम
पेप्सी कोला अपनाते है ।
क्या यही प्रगति परिभाषा है ?

क्या ये नवयुग की आशा है ?
क्या यही प्रगति परिभाषा है ?

Saturday, February 11, 2012

मै लड़ता हू !

एक इन्सान हू ! मै लड़ता हू !
अपनों से और समाज से|
अन्याय से और अत्याचार से ।
कभी कमजोर से और कभी बलवान से।
कभी ईमानदार और कभी बेईमान से ।
व्यवस्था और परम्परा से, कभी अपने आप से ।
कभी विजय करता हू, कभी परास्त होता हू।
कभी अपनों से हारता हू, कभी परायो से
और कभी हारता हू, अपने ही सपनो से।
कभी विजयी होकर, फिर लड़ने की प्रेरणा पाता हू ।
कभी हार कर, विजयी होने को लड़ता हू।
एक के बाद एक लड़ाई लड़ता हू |
हर पल लड़ता हू, हर रोज लड़ता हू।

मै लड़ता हू! पर क्यों लड़ता हू?
पाने को सम्मान, या बचाने अपनी पहचान।
बचाने अपना इमान या पाने को इनाम।
पाने अपना अधिकार या करने को अतिचार।
न्याय के लिए, या रछित करने को अन्याय 
निःस्वार्थ से लड़ता हू, या स्वार्थ के लिए।
कभी सपना साकार करने को लड़ता हू।
कभी अपने को सिद्ध करने को लड़ता हू।
जीवन पर्यंत लड़ता हू ।

लड़ता हू क्यों की, लड़ना एक परम्परा है।
इसका कोई और नहीं आसरा है ।
अमर्त्य होने को, नव निर्माण करने को
'नवीन' विहान के लिए, मै लड़ता हू !

Saturday, January 21, 2012

आया चुनाव का त्यौहार है ।

भारत देश के पांच राज्य में 
बिछी चुनाव की बिसाद है ।

राहुल बाबा ने ताल थोक दी,
उमा भारती की ललकार है।
देखो भाई देखो अब फिर से,
आया चुनाव का त्यौहार है ।

मुलायम जी ने दिल है खोला,
अमर अजीत ने भी मोर्चा खोला।
सब कहते है भ्रस्त्रचारी,
हो गयी है सरकार हमारी।

चुनाव आयोग ने पाला मारा,
सबके पैसो पे ताला डाला।
बाबू राम की काली रात है आयी,
माया बोली चाल हमारी।

उतरांचल की सर्दी पे,
चुनाव की गर्मी है भारी।
कोश्यारी जी की कोशिश जारी,
कांग्रेश बोले मेरी बारी।

सिख्हो के प्रदेश में भी
चुनावी गर्मागर्मी जारी।
अमरिंदर का खुला खजाना,
बादल ने भी ठेका खोला।

मणिपुर के मुख्यमंत्री जी ,
कहते होगी तीसरी पारी।
तीन राज्यों की गहमा गहमी में,
गुम हो गया गोवा भाई।

टीम अन्ना की ये ही कल्पना,
साकार हो जाये उनका भी सपना।
इसलिए उनकी भी आवाज है आयी,
सही लोगो को चुन लो भाई।

जाती धर्म की रोटी सेकी,
भात्राचार मुक्ति की दे दी गोली।
चुनाव योग की कोशिश जारी,
इसबार मतदान हो जाये भारी।

हर नवीन की यही कल्पना ,
शुध्द प्रशासन हो जाये अपना।
बड़ा महत्वपूर्ण  वोट है तेरा,
सोच समझ के वो है देना।

देखो भाई देखो फिर से आया
लोकतंत्र का सबसे बड़ा त्यौहार है।


Saturday, January 14, 2012

विजय श्री !

विजय श्री !
एक मल्लिका,
सबको अकर्सित करती,
अपने पे इठलाती,
सबको को अधीन कर,
तप जप और उपासना करवाती |
अधीर को उद्देश्य दे,
बार बार प्रयास करवाती |
प्रेमी,
प्रयास कर,
प्रवीण होकर,  
उपासना का प्रसाद पाकर |
स्वप्न को साकार कर,
सफलता के सिंघासन पे, 
सुंदरी "विजय श्री" का पाश पाकर,
धन्य हो जाता,
और
नवीन युग का आरंभ करता |