Saturday, February 11, 2012

मै लड़ता हू !

एक इन्सान हू ! मै लड़ता हू !
अपनों से और समाज से|
अन्याय से और अत्याचार से ।
कभी कमजोर से और कभी बलवान से।
कभी ईमानदार और कभी बेईमान से ।
व्यवस्था और परम्परा से, कभी अपने आप से ।
कभी विजय करता हू, कभी परास्त होता हू।
कभी अपनों से हारता हू, कभी परायो से
और कभी हारता हू, अपने ही सपनो से।
कभी विजयी होकर, फिर लड़ने की प्रेरणा पाता हू ।
कभी हार कर, विजयी होने को लड़ता हू।
एक के बाद एक लड़ाई लड़ता हू |
हर पल लड़ता हू, हर रोज लड़ता हू।

मै लड़ता हू! पर क्यों लड़ता हू?
पाने को सम्मान, या बचाने अपनी पहचान।
बचाने अपना इमान या पाने को इनाम।
पाने अपना अधिकार या करने को अतिचार।
न्याय के लिए, या रछित करने को अन्याय 
निःस्वार्थ से लड़ता हू, या स्वार्थ के लिए।
कभी सपना साकार करने को लड़ता हू।
कभी अपने को सिद्ध करने को लड़ता हू।
जीवन पर्यंत लड़ता हू ।

लड़ता हू क्यों की, लड़ना एक परम्परा है।
इसका कोई और नहीं आसरा है ।
अमर्त्य होने को, नव निर्माण करने को
'नवीन' विहान के लिए, मै लड़ता हू !