रिश्तो के पहाड़ पर खड़ी
कर्तव्य की परिधि में बंधी
पैसो के टुकड़ो से बनी
सबने ने ठोकरों से गिनी
ये जिंदगी!
शिखर और गर्त में चली
अपने और आपनो के सपनो
को साकार करने चली
'नवीन' युग की चाह में बढ़ी
ये जिंदगी !
हस्र क्या होगा न जाने
बस कर्म के सहारे चलती
परिणाम का पता नहीं
तभी तो एक धूत क्रीडा है
ये जिंदगी !
कभी दूसरो के इशारों पे
तो कभी आपनी शर्तो पे चली
कभी डरावने रूप में होती
तो कभी बहुत खूबसूरत है
ये जिंदगी !